Bollywood फ़िल्म इंडस्ट्री में कहानी और मनोरंजन का पड़ा अकाल : दर्शक क्यों पसंद नहीं करते बॉलीवुड फिल्मे ? एक विश्लेषण
जिस जगह से भारत में फिल्मे बनाने की शुरुवात हुई और जिस जगह ने बॉलीवुड के महान कलाकार दिए ऐसी फिल्म इंडस्ट्री आज खत्म होने के कगार पर है। लोग बॉलीवुड से ज्यादा साउथ की फिल्मे पसंद करते हैं। बॉलीवुड ने कभी भी सभी तरह के लोगो को एक जैसा मौका नहीं दिया, जैसे यहां जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव होता रहा हैं। इसका सूचक देखना है तो हम यह पता कर सकते। आप बॉलीवुड के कलाकारों की जाति और धर्म देखिए और पता लगाइए कोन जाति और कोन धर्म के लोग सबसे ज्यादा है, ठीक वैसे ही कोन जाति और धर्म के लोग इस फ़िल्म इंडस्ट्री में कम हैं। इससे हमे सटीक तरीके से पता लगेगा की बॉलीवुड में सभी लोगो के प्रतिनिधित्व के बारे में क्या सोच हैं।
बॉलीवुड में सुंदरता की परिभाषा और पैमाना भी तय हैं या नहीं यह बता नही सकते। बॉलीवुड की एक फिल्म आई थी जिसका नाम बाला हैं, उस फिल्म में गोरी लडकी को सावली बनाकर पेश किया गया। इससे हमे पता चलता है सुंदरताके प्रति बॉलीवुड की सोच क्या हैं।
जिस तरह से बॉलिवुड यह साउथ के फिल्मों की रीमेक बना के दर्शकों को परोस रहा है। उससे यह साफ जाहिर होता हैं की बॉलिवुड के पास कॉन्टेंट की बहुत कमी है। एक तो कॉन्टेंट की कमी है या फिर बॉलिवुड दूसरो ने बनाया हुआ खाना परोसने पे अपने आप के उपर गर्व महसूस करते हों।
आज कल साउथ की फिल्मे यह हिंदी में डब हो रही है और ज्यादातर दर्शक यह साउथ की फिल्मे हिंदी में देख चुके होते हैं, उसके बाद बॉलिवुड वही फिल्में रिपीट बनाता हैं, अपनी तरफ से किसी भी प्रकार की मेहनत नहीं करते। ऐसा नहीं है की लोग साउथ की रीमेक पसंद नहीं करते, इससे पहले बनी हुई साउथ की रीमेक जैसे तेरे नाम, थ्री इडियट, बैंड बाजा बारात, विकी डोनर इत्यादि जैसी फिल्में दर्शकों ने बहुत पसंद की है लेकिन अभी ऐसा क्या हो गया की साउथ में सुपर हिट हुई फिल्म बॉलिवुड में बनने पर फ्लॉफ हो जाती है।
बॉलिवुड का एक ही फॉर्मूला है
एक्टर एंट्री + रोमांस + स्टोरी + क्लाइमैक्स + हैप्पी एंडिंग इसके अलावा कभी कभी ऐसी मास्टरपिस आती है जिसे दर्शक बहुत पसंद करते जैसे मसान,उड़ान और Bandit Queen इस तरह की फिल्मे सभी प्रकार के लोग पसंद करते हैं।
अभी बॉलिवुड में एक ऐसा प्रचलन आया है की जहा अंगो का प्रदर्शन, सेक्स सीन, किसिंग सीन इत्यादि दिखाना अनिवार्य सा बन गया है।
अगर वे यह सब नहीं दिखाएंगे तो दर्शक फिल्मों पे थूकने के लिए भी नही आयेंगे। इस तरह से सोचना निर्माताओं ने बंद कर देना चाहिए। अब लोग इससे आगे की सोच रहे हैं, आज लोगो को सब चाहिएं लेकिन सब मॉडरेट होना चाहिए। न कुछ कम हो और न कुछ ज्यादा हो।
बॉलिवुड में सामाजिक फिल्मों का भी चलन रहा है, लेकिन बॉलीवुड इस जॉनर को भी मिर्च मसाला डालकर प्रस्तुत करना चाहता हैं और आख़िर में यह फ़िल्म खिचड़ी बन जाती हैं। हम सामाजिक सलाहकार फिल्मों को समाज का आयना मानते हैं। दर्शकों को कॉपी पेस्ट फिल्में बिलकुल भी पसंद नहीं आती और भारत में ज्यादातर फिल्मे कॉपी पेस्ट ही होती है। ऐसा नहीं है की बॉलिवुड में अलग सोचनेवाले लोगो की कमी है लेकिन बॉलिवुड उन्हें अपना नही रहा इसीलिए वे लोग भी घिसी पीटी फिल्मे ही बना रहे हैं।
बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि बॉलिवुड के पास कॉन्टेंट और टैलेंट हैं लेकिन उसे उपयोग में नही लाया जा रहा हैं। अब तो बॉलिवुड ने जाग जाना चाहिए वरना बॉलिवुड का सूपड़ा साफ़ हो जायेगा और बॉलिवुड के कलाकार साउथ फिल्म इंडस्ट्री से भीख मांगते नज़र आयेंगे की हमे काम दो और वे काम भी देंगे लेकिन उसमे आपकी वैल्यू पूरी तरह कम कर दी जायेंगी। इसका जीता जागता उदाहरण है, आनेवाली राजा मौली की फिल्म RRR। अजय देवगन जैसे बड़े कलाकार को एक छोटासा रोल देना मानो ऐसा लग रहा है जैसे यह रोल खास अजय देवगन के लिए जबरजस्ती बनाया गया हों। साउथ फिल्म इंडस्ट्री में बॉलिवुड के कलाकार जब काम करते हैं तब ऐसा लगता है की मानो यह उनकी पहली फिल्म हो और उन्हें एक्टिंग का कोई अनुभव नहीं हैं। वे अपना खुद का अच्छा घर छोड़ के दूसरो के कुटिया में रहने के लिए तड़प रहे हैं मानो उनका महल गिरनेवाला हो। इस विषयो पे बात इसीलिए भी करनी जरूरी ताकी तुम अपना अस्तित्व बचा सको।
पहले टीवी पे सिर्फ बॉलिवुड की ही फिल्में दिखाई जाती थीं और आज बड़े से बड़े चैनल पे डबिंग करके दस में से सात फिल्मे यह साऊथ की होती है, मतलब आज आपका प्लेस धीरे धीरे काबिज़ किया जा रहा हैं। हालाकि अब साऊथ फिल्म इंडस्ट्री pan रिलीज पे ज्यादा जोर दे रही हैं। ऐसा नहीं साऊथ कॉपी पेस्ट नही करता, वो भी करता हैं लेकिन उसे पेश करने का तरीका अच्छा होता हैं, हमेशा नए लोगो को मौका देता है।
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